रविवार, 21 अगस्त 2011

देखिए गांधी जी का चम्पारणः जहां है मजबूत तंत्र में लोक मजबूर

-समदर्शी प्रियम-
चम्पारण के किसानों का दु:ख एवं शोषण समाप्त करने के लिए पूज्य बापू ने शिक्षा के प्रसार पर बल दिया . उन्होंने १३ नवम्बर १९१७ को बडहरवा लखन सेन ,२० नवम्बर १९१७ को भीतिहरवा और १७ जनवरी १९१८ को मधुवन मे अनौपचारिक विद्यालयों की स्थापना की .शिक्षा के स्वरुप पर गांधी जी का चिन्तन लगातार चलता रहा . उन्होंने नयी तालिम के रुप में शिक्षा सिद्धांत को सूत्रबद्ध किया . उनकी पहल पर डाक्टर जाकिर हुसेन कि अध्यक्षता में नयी तालिम पर आधारित बुनियादी शिक्षा का पाठयक्रम तैयार हुआ . परन्तु खेद की बात यह है कि जो बुनियादि विद्यालय परतंत्र भारत चला रहा था , उन्हें स्वतंत्र भारत नही चला सका . विद्यालय के भवन ध्वस्त हो गये . पाठयक्रम निरस्त कर दिये गये . अध्यापक सेवा मुक्त होते गये . और इस तरह स्वतंत्र भारत में नयी तालीम की कब्र खोद दी गयी .  आज अंग्रेजी पढाई का तेजी से प्रसार हो रहा है . मैकाले शिक्षा पद्धति का संजाल फ़ैल गया है . आजादी के बाद हम तेजी से अपनी जडों से दूर होते गये और अंग्रेजों का छोडा चाटने में मग्न हो गये . अंग्रेजों की पुरानी शिक्षा को बरकरार रखते हुए भारत निरक्षरता को दूर नही कर सका , प्राथमिक शिक्षा सबों को प्राप्त नही हो सकी .
दोहरी शिक्षा प्रणाली के अन्तर्गत निजी विद्यालयों के फ़लने-फ़ूलने और सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली के खस्ताहाल होते जाने के कारण एक खास वर्ग में शिक्षा का विकास हुआ , भले हीं आम जनता मे साक्षरता दर बढा लेकिन शिक्षा का स्तर गिरता गया . हमारे संविधान ने देश की जनता को शिक्षा का अधिकार कानून दिया है . ऐसा नही कि शिक्षा का अधिकार देश की जनता के लिये नया है . बल्कि भारत के संविधान के अनेक अनुच्छेदों में यह अन्तर्निहित है . इस कानून की विशेषता है कि हर बच्ची या बच्चा को शिक्षा सत्र में अपने पडोस के किसी भी स्कूल में प्रवेश लेने का अधिकार होगा . फ़िर चाहे वह पडोसी स्कूल सरकारी हो या प्राइवेट . इसके अनुसार २५ प्रतिशत गरीब पिछडे और विकलांग बच्चों को निजी-पडोसी स्कूल में दाखिला देना होगा . इसकी एक और खूबी है कि हर बच्चे को गुणवत्ता के मानदण्डों के अनुरुप शिक्षा उपलब्ध कराना है . इस प्रकार इस कानून को समान शिक्षा की दिशा में एक पहल कहा जा सकता है . 
लेकिन प्रश्न यह है कि क्या नागरिकों को अपने तमाम मौलिक अधिकार मिल सके ? कितनी समानता मिली  शोषण और अन्याय के विरुद्ध? और न्याय का रास्ता कितना आसान हुआ एवं कितनी धर्मनिरपेक्षता मिली इस देश को आजादी के बाद से आज तक ? एक भी ऐसा अधिकार नही जो साठ साल के सविंधान से सरकार ने जनता को पूरी तरह दे दिया हो . क्या कारण है कि आज भी देश का पढा लिखा , मजदूर किसान ,कानून का इज्जत करने वाला नागरिक पुलिस से डरता है , पटवारी से डरता है , दफ्तरों से डरता है , नेता मंत्री तक से डरता है . देश का गरीब और दलित समाज सरकार और उसके कानून का सबसे बडा भूक्तभोगी है . सारी योजनाऍ उनके नाम पर बनती है . पर कुछ हीं बूँदे उनके होठों पर टपकती हैं . सारा रस दूसरे पी जाते हैं . एक अधिकारी से दूसरे और एक न्यायालय से दूसरे न्यायालय तक भटकना ही जैसे उनका अधिकार रह गया है . ऐसे में शिक्षा के कानून का बुरा हश्र न हो यह डर बना हुआ क्योंकि तंत्र आज भी मजबूत है और लोक अभी भी मजबूर .

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