इन दिनों जारी आंदोलन को आज भले ही मीडिया द्वारा ऐतिहासिक क्रांति कह कर पुकारा जा रहा हो, लेकिन मेरे खयाल से इसके नेता अन्ना हजारे की तुलना जयप्रकाश नारायण या महात्मा गांधी से करना कतई ठीक नहीं होगा। उनदोनों नेताओं और अन्ना हजारे में आसमान और जमीन का अंतर है। जब मैं मुंबई में शरद पवार सरकार के दौरान भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़े था तब कुछ लोगों ने मुझे उनसे मिलने की सलाह दी।
मैं अन्ना से मुलाक़ात करने के लिए उनके गांव रेलेगन सिद्धी गया था। लेकिन इस यात्रा ने मेरी आंखों पर से पर्दा उठा दिया। वहां पहुंच कर मैंने पाया कि मीडिया ने अन्ना की जो तस्वीर बना रखी है वे हकीक़त में उससे बिल्कुल ही अलग शख्सियत थे। उन्होंने किसी तरह तीन सरकारी गाड़ियां अपने निजी इस्तेमाल के लिए रखवा ली थीं। इसके अलावा सरकारी प्रोजेक्ट में लगे कई कर्मचारी भी उनके निजी कार्यों में जुटे हुए थे। मुझे यह देखकर बड़ा झटका लगा कि जो शख्स भ्रष्टाचार के खिलाफ इतनी बड़ी लड़ाई लड़ने का दावा कर रहा है वह खुद इसके बारे में कुछ जानता ही नहीं।
मेरा मानना है कि अन्ना ने यह सब कुछ भोलेपन में किया होगा। अन्ना ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं। उन्होंने कोई सातवीं-आठवीं तक की ही पढ़ाई की है, इसीलिए उनकी बौद्धिक क्षमता अधिक नहीं है। वो अक्सर अनशन पर चले जाते हैं। कभी चार-पांच दिन, कभी सात दिन। उन्होंने मुझसे एक बार कहा कि वो पास के गांव में अनशन करना चाहते हैं। उन्होंने मुझसे कहा कि आपको सिर्फ मामले का प्रचार करने की जरूरत है, फिर ये सरकारी अधिकारी उनके आगे-पीछे दौड़ेगे। लेकिन जब मुझे पता चला कि वो अनशन के दौरान जो पानी पीते हैं उसमें विटामिन मिला होता है, तो मुझे आघात लगा। मैं उनसे अलग हो गया।
मेरा मानना है कि कोई सफेद कपड़े पहन लेने भर से गांधी नहीं बन जाता। आपको उनके सिद्धांतों पर भी चलने की जरूरत है। बहरहाल, मैं इस आंदोलन के समर्थन में हूं क्योंकि यह देश की भलाई के लिए हो रहा है।
(डिमोलिशन मैन’ के नाम से मशहूर रहे जी आर खैरनार मुंबई नगर महापालिका के कमिश्नर रह चुके हैं और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई में उन्हें एक प्रतीक के तौर पर जाना जाता है। वे तब चर्चा में आए थे जब उन्होंने मुंबई में कई नामी हस्तियों की बिल्डिंगों से अवैध कंस्ट्रंक्शन हटवाया था। उनकी आपबीती कई पत्रों में प्रकाशित है)
(www.mediadarbar.com से साभार)
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