शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009

झारखंड मे धन-बल का खेल: भ्रष्टाचारी जीते, शोर मचाने वाले दिग्गज हारे


वेशक कभी बिहार की राजनीति का कोई सानी न था.लालू की राजनीति ने तो सियासत के मायने ही बदल दिये थे.आज वही चीजे झारखंड मे नज़र आ रही है.चाहे कोई भी राजनीतिक दल हो, कांग्रेस,भाजपा,झामुमो,जदयू,राजद के वे सारे दिग्गज चुनाव हार गये जो आतंक और भ्रष्टाचार का हो-हल्ला मचाने मे काफी आगे थे.दूसरी तरफ वे सारे भ्रष्टाचारी परोक्ष या अपरोक्ष रूप से चुनाव जीत गये,जिन्हे मुख्य निशाना बनाया जा रहा था.मधु कोडा न सही,उनकी पत्नि ही सही.जेल मे बन्द मंत्री एनोस एक्का,हरिनायाण राय, गंभीर जांच के घेरे मे बन्धु तिर्की जैसे बिना सिकड के नेता भारी मतो के अंतर से विजयी हुये.अविश्वसनीय ढंग से चुनाव हारने वालो मे भाजपा के सरजू राय,रविन्द्र राय,श्री नामधारी,कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप बलमुचू,विधानसभा अध्यक्ष आलमगीर आलम,राधा क्रिष्ण किशोर,जदयू के प्रदेश अध्यक्ष जलेश्वर महतो,शैलेन्द्र महतो,राजद के प्रदेश अध्यक्ष गिरिनाथ सिन्ह,थामस हांसदा आदि सरीखे भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचार का हल्ला मचा रहे नेता धाराशाही हो गये.


बिहार मे भी कभी यही हो रहा था. लालू के लूट-आतंक राज के विरोध मे जो भी मुखर होता था, औन्धे मुहँ गिरता था.लेकिन नीतीश जैसे धैर्यशील नेता ने अपना लक्ष्य साधे रखा और अंततः कामयावी पा ली.यह स्थिति झारखंड मे नही दिखाई दे रही है.कोई भी दल के नेता नीतीश सरीखे धैर्य का नितांत अभाव है.मरांडी भी कुछ ज्यादा ही हडवबडी मे दिख रहे है. प्रबल संभावना तो यह है कि कही सरकार न बनने की सूरत मे उन्हें भस्मासूर न बना दे और उनके जनाधार को हडपने की भरपूर कोशिश करे. झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन यानि गुरूजी को हडबडी तो इसलिये है किइस ढलती उम्र मे शायद उन्हें ऐसा सुनहरा मौका पुनः मिले या न मिले.


वहरहाल,झारखंड मे चुनाव परिणाम आने के बाद एक बात साफ हो गई है कि यहाँ किसी दल को खासकर कांग्रेस-झाविमो को भ्रष्टाचार से उतना लेना-देना नही है जितना कि वे चुनाव के दौरान ढिढोरे पीट रही थी.तभी तो झामुमो से इतर सरकार बनाने के आकडे तलाश रही है.समझ मे नही आता कि कांग्रेस के सुबोधकांत व झाविमो के बाबूलाल मरांडी सरीखे नेता उन निर्दलियो मे भी सरकार तलाश रहे है,जिन्हे वे चुनाव मे राज्य की बदहाली और बदनामी के लिये कोसते नही थक नही रहे थे. कहा तो यहाँ तक जा रहा है कि दोनो ने खासकर सुबोधकांत ने धन-बल की राजनीति ही नही अपनाई बल्कि दोमुहाँ सांप का खेल भी खूब खेला.एक तरफ कोडा लूट कांड का शोर तो दूसरी तरफ अपने हित मे अन्दरूनी तौर पर चुनाव जीतने की हरसंभव मदद.

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