रविवार, 8 मई 2011

रजरप्पा : महापाप का तांडव और मीडिया-1


जय मां छिन्न मस्तिके..भैरवी और दमोदर नदी के चमत्कारिक संगम स्थल रजरप्पा.विश्व की अनोखी धार्मिक आस्था भूमि.जहां जाकर हर कोई मां की दर्शन करना चाहता है.विश्व भूगोल और सनातन आस्था के पन्ने बताते है कि दुनिया में रजरप्पा को एकमात्र ऐसे संगम स्थल पर होने का सैभाग्य हासिल है.जहां एक नारी (भैरवी नदी) अपने स्वामी पुरुष (दमोदर नद) के उपर आकर अपनी संपूर्ण शक्ति के साथ गिरती है.सीधे छाती पर तांडव करती है.
सनातन धर्म विशेषज्ञ मानते हैं कि जहां इस तरह की स्थिति होती है,वहां की प्रकृति एवं उसके छांव के जीव-जन्तु उन्मादी प्रवृति के होते हैं.किवदंतियां कहिए या धार्मिक मान्ययताएं.मां छिन्न मस्तिके की दैहिक सरंचाना भी उन्माद को शांत करने के संदर्भ में खून की धाराओं से शुरु होती है और निर्बाध बढ़ते बलि की प्रथा पर टिक गई है.
 पिछले दिन मुझे रजरप्पा जाकर मां छिन्न मस्तिके के दर्शन करने का 2 वर्ष बाद एक और सौभाग्य प्राप्त हुआ.लेकिन इस बार न जाने क्यों मुझे ऐसा लगा कि अब यहां सब कुछ बदल गया है.इतने कम समय में ही धर्म पर पाप स्पष्ट रुप से हावी हो गया है.भूत की आस्था की जमीन पर वर्तमान के ऐसे कंटीली झाड़ियां उग आए हैं...जो मन-मस्तिष्क को पतन की ओर ले जाती है.
बहरहाल,मैं इतिहास की गहराइयों में न जाकर मां छिन्न मस्तिका के प्रकट स्थल रजरप्पा में धार्मिक भावनाओं पर पाप के तांडव की तस्वीर बनाने की एक नन्हा प्रयास कर रहा हूं...ताकि किसी न किसी की चाह धर्म की देह पर पड़ी धूल को साफ कर सके...कम से कम इतना तो अवश्य हो कि पाप के बीच धर्म की लकीरें...धूंधली आंखों से ही सही...दिख सके.
विश्व पत्रकारिता का इतिहास साक्षी है कि संचार माध्यमों ने सभ्यता-संस्कृति-धर्म को समृद्ध किया है...उसकी रक्षा की है....लेकिन आज अत्यंत पीड़ादायक एक कड़वा सच है कि मीडिया,खासकर झारखंड की मीडिया भी रजरप्पा में हो रहे इस महापाप में कहीं न कहीं शामिल दिख रहे हैं....हिस्सेदार दिख रहे हैं....सच सबको पता है लेकिन, भोग-विलास के काले चश्में के आगे उन्हें सूझ कुछ भी नही रहा.....

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