पिछले दिन मुझे रजरप्पा जाकर मां छिन्न मस्तिके के दर्शन करने का 2 वर्ष बाद एक और सौभाग्य प्राप्त हुआ.लेकिन इस बार न जाने क्यों मुझे ऐसा लगा कि अब यहां सब कुछ बदल गया है.इतने कम समय में ही धर्म पर पाप स्पष्ट रुप से हावी हो गया है.भूत की आस्था की जमीन पर वर्तमान के ऐसे कंटीली झाड़ियां उग आए हैं...जो मन-मस्तिष्क को पतन की ओर ले जाती है.
बहरहाल,मैं इतिहास की गहराइयों में न जाकर मां छिन्न मस्तिका के प्रकट स्थल रजरप्पा में धार्मिक भावनाओं पर पाप के तांडव की तस्वीर बनाने की एक नन्हा प्रयास कर रहा हूं...ताकि किसी न किसी की चाह धर्म की देह पर पड़ी धूल को साफ कर सके...कम से कम इतना तो अवश्य हो कि पाप के बीच धर्म की लकीरें...धूंधली आंखों से ही सही...दिख सके.
विश्व पत्रकारिता का इतिहास साक्षी है कि संचार माध्यमों ने सभ्यता-संस्कृति-धर्म को समृद्ध किया है...उसकी रक्षा की है....लेकिन आज अत्यंत पीड़ादायक एक कड़वा सच है कि मीडिया,खासकर झारखंड की मीडिया भी रजरप्पा में हो रहे इस महापाप में कहीं न कहीं शामिल दिख रहे हैं....हिस्सेदार दिख रहे हैं....सच सबको पता है लेकिन, भोग-विलास के काले चश्में के आगे उन्हें सूझ कुछ भी नही रहा.....
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