सोमवार, 8 अगस्त 2011

बदल रही है दोस्ती की परिभाषा

दिलीप कुमार गुप्ता
बात अगर दोस्ती की हो और हम प्रेमचंद की कहानी के पात्र अलगू चौधरी व जुम्मन मियां की बात न करें ऐसा हो ही नहीं सकता। ठीक वैसे ही जैसे बिहारशरीफ की बात हो और बाबा मख्दुम साहब व मणिराम की दोस्ती की मिसाल न पेश हो ऐसा हो ही नहीं सकता। चाहे महाभारत काल के कृष्ण सुदामा की दोस्ती की बात हो या फिल्म शोले के जय-वीरू की, दोस्ती हर मायने में काफी खास है। आज फ्रेंडशीप डे है और पूरे देश में इसे काफी धूमधाम से मनाया जाता है। दोस्तों के बीच ग्रिटिंग्श कार्ड व उपहार देने का एक चलन सा बन गया है। हर कोई इस दिन को अपने दोस्तों के लिए खास बनाना चाहता है। एक नये अंदाज में, एक नये माहौल में, लेकिन वर्तमान में दोस्ती जैसे पवित्र रिश्तों की डोर लोगों के हाथ से छुटती जा रही है। जिसकी जगह मतलबी, स्वार्थ से भरी अपेक्षाओं ने ले ली है। पहले की दोस्ती बिना स्वार्थ, बिना किसी उम्मीद के की जाती थी। अपने समय को याद करते हुए कमरूद्दीनगंज निवासी रंजीत कुमार सिंह बताते हैं कि पहले की दोस्ती अद्भुत होती थी। लोग भले-बुरे का फर्क समझते थे। दोस्त अपने दोस्तों को सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरणा देते थे। सुख-दुख के साथी होते थे, दोस्तों के बीच विश्वास व प्रेम था, मगर आज की दोस्ती काफी मतलबी है। लव से ज्यादा दोस्ती में व्यस्त है।
दोस्ती काफी अनमोल है डिम्पल को कहना है कि
एंग्लो मेनिया स्पोकेन सेंटर की छात्रा डिम्पल की माने तो दोस्ती उसके जीव का हिस्सा है। बिना दोस्त के जीवन अधूरा है। अच्छी, बुरी सभी मेमरी आप दोस्तों से शेयर कर सकते हैं।
सोच समझ कर दोस्ती करें आज जो माहौल है, दोस्त-दोस्त की हत्या कर रहा है। अपराध में दोस्तों को धकेल रहा है। गलत चीजों के लिए प्रेरित कर रहा है। ऐसे में दोस्त वो भी अच्छा व सच्चा बनाना काफी बड़ी चुनौती है। इसलिए सोच-समझकर दोस्ती करें।
दोस्ती से पवित्र रिश्ता कुछ हैं ही नहीं।भैंसासुर निवासी तुलसी की मानें तो दोस्ती से अच्छा व पवित्र रिश्ता कुछ हो ही नहीं सकता। लोग कहते हैं कि लड़के-लड़की कभी अच्छे दोस्त नहीं होते। जरूरत है मानसिकता को सही करने की।

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