सोमवार, 8 अगस्त 2011

फेसबुक सेः देशभक्ति वनाम झंडे का फंडा

By Asif Ali Hashmi 
फेसबुक पर अचानक एक नयी लहर से चल पड़ी है....हर तरफ  आन्दोलन और देशभक्ति के नारे, आरोप, प्रत्यारोप, वाद, विवाद और देशभक्ति के नारों से फेसबुक गुंजायमान हो गया है...हर पेज और ग्रुप के हाथ में हर आदमी के हाथ में देशभक्ति का झंडा नज़र आ रहा है.. ख़ुशी की बात तो है...परन्तु इस के मूल से शुरू करें तो इस देशभक्ति के झंडे के फंडे ही अलग नज़र आते हैं...! 
सबसे पहले श्री अडवाणी जी ने कहा की काले धन को भारत वापस लाओ,  उनके हाथ में झंडा नज़र सा आने लगा...मगर इस मुद्दे को उठा कर खुद झंडे को ले कर बैठ गए....फिर बाबा रामदेव जी ने कहा भ्रष्टाचार मिटाओ ...और एक झंडा उन्होंने भी उठा लिया..उन्होंने  उस झंडे को उठा तो लिया, मगर नारा जो लगाया था, उस को क्रियान्वित करना भूल गए...फिर एक दिन अचानक श्री अन्ना हजारे जी जिसने भ्रष्टाचार में लिप्त  6 मंत्री और 463 अधिकारियों को नपवा दिया था...एक दिन यह झंडा ले कर अपने 5 -7  साथियों  के साथ  जंतर मंतर पर आ कर बैठ गए....और भरष्टाचार के खिलाफ बिगुल बजा डाला..और सरकार को नचा डाला  !
जब अन्ना के हाथ में झंडा था..और वे सरकार को  पसीने पसीने कर रहे थे...अनशन कर दिया था..तब फेसबुक पर पेजेस /ग्रुप्स और  लोगों के हाथ में देशभक्ति के झंडे की बजाये...टीम इंडिया की जीत का बासी झंडा ही नज़र आ रहा था...जैसे जैसे अन्ना के आन्दोलन का तवा गर्म होता गया और ...झंडा ऊंचा होता गया...लाइव टेलीकास्ट  होने लगा.. लोगों ने भी एक एक झंडा उठा लिया..., अडवाणी जी ने कहा की यह झंडा तो मेरे पास था और में ने ही इसको पहले उठाया था, उधर बाबा रामदेव बोले की...अन्ना से पहले से ही यह झंडा मैंने  उठाया था...और उन्होंने अन्ना की टीम के एक सदस्य  के झंडा उठाने पर आपत्ति टी.वी. पर बयान दे कर ज़ाहिर कर दी...!और एक दिन अपना झंडा लेकर खुद रामलीला मैदान में भक्तों को आमंत्रित कर के खुद का  झंडा ज्यादा  ऊंचा दिखाने की ललक  लिए अनशन क्रिया के लिए बैठ गए....तब सरकार को लगा की यह झंडे तो सरकार के झंडे से भी ज्यादा ऊंचे होते जा रहे हैं...तो सरकार ने सरकारी दिखाई और अपने झंडे में से डंडा निकल लिया ...और जो भी उस दिन हुआ कोई उस को काला दिवस कह रहा है कोई दमन दिवस...जो भी हुआ  उसके मूल की पहेली कभी भी न तो सरकार सुलझाएगी...और न ही बाबा जी...!  
 खैर...उस काण्ड के  बाद बाबा जी अपना झंडा ले कर अपने आश्रम  पधार गए...अब यह झंडे का झगडा हर जगह दिखाई दे रहा है...कभी बाबा अपना झंडा अन्ना  के झंडे के साथ बाँध कर ऊंचा करना चाहते हैं..कभी सेना बना कर सैनिकों के हाथ में देना चाहते है...कुल मिला कर .....इस के बाद झंडा पुराण चल पड़ी.....और अब हर हाथ में एक झंडा है....और हर कोई यह कह रहा है की मेरा झंडा तेरे से ऊंचा है..!  जब अन्ना हजारे ..जंतर मंतर पर बैठे थे तब यह व्यक्तिगत झंडे न जाने कहाँ थे....? अब न जाने ....किस का झंडा सब से ऊंचा रहेगा....और इस झन्डे के फंडे में से कोई और झंडा तो नहीं निकल आएगा......चिंतन मनन जारी है.....
इन सब के झंडों से ऊंचा एक झंडा स्वामी निगमानंद जी का मानता हूँ, जिसने गंगा नदी के सौन्दर्य और गौरव के लिए अपने आपको मिटा दिया....उस वीर और देशभक्त को मेरा सलाम...!!! काश आप के बलिदान  से यह बाबा रामदेव, अन्ना हजारे और ये सरकारें, राजनीतिक दल कुछ सबक लें...

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