गुरुवार, 14 जनवरी 2010

कब टूटेगी झारखंडी नेताओ की संकीर्ण मानसिकता?

अलग झारखंड प्रांत गठन के बाद से यदि यहाँ की राजनीति की गहन अध्ययन की जाये तो एक बात साफ जाहिर होता है कि बिहार मे लालूजी के लूट आतंक राज्य के विरूद्ध जहाँ नीतीश कुमार ने नया संगठन खडा कर विकास और भाईचारे का नारा देकर आज की तारीख मे सब कुछ बदल दिया,वही झारखंड मे पुराने नेता अपने पुराने तेवरमे ही रहे और नये नेताओ का हुजुम मधु कोडा सरीखे निकले. कांग्रेस, भाजपा, झामुमो, राजद के नेताओ को पुराना मान छोड दे तो बन्धु तिर्की,एनोसएक्का,हरिनारयण राय,कमलेश सिन्ह,भानु प्रताप शाही सरीखे नेता राज्य की जनता के पिछे कम और काला धन इकठ्ठा करने के पिछे कही अधिक भागे.शयद इन्हे विश्वास है कि वह नेता उतना ही बडा होता है,जितना अधिक उसके पास धन होता है,चहे वह काला धन ही क्यो हो! यहाँ यह उल्लेख करना जरूरी हो जाता है कि जिस तरह से झारखंड के छोटे-छोटे संगठनो के नेताओ (निरदलीय विधायको) को सत्ता मे अहम भागीदारी मिली.यदि ये चाहते तो नई मिशाल कायम कर जनप्रिय बन सकते थे.लेकिन इनलोगो ने मिशाले तो कायम की है मगर यहाँ की 3 करोड दीन-हीन जनता को शर्मसार करने वाली.अब हम बात करते है आजसू के मुखिया सुदेश महतो की. मेरी समझ मे ये युवातुर्क पिछले एक दशक से सता की प्रमुख धुरी बन बैठा है.अर्जून मुंडा,मधु कोडा की सरकार तो इनके गुलाम बन गये थे. इस बार की शिबू सरकार की लट्टू भी इन्ही की कील पर है.इन्हे इनके सहयोगी विधायको को कई महत्वपूर्ण विभाग मिलते रहे है और इस बार भी मिले है.श्री मह्तो खुद कई महत्वपूर्ण विभाग के साथ होम मिनिस्टर तक बने है.लेकिन प्रांत मे उनका एक ऐसी भी उपलब्धि नही रही है,जिसपर आम जनता का विश्वास बढ सके.पहले एक,फिर दो और अब दो से पाँच सीट लाना.यह उनकी राज्यस्तरीय लोकप्रियता नही बल्कि सीमित लक्षित क्षेत्रो पर विशेष ध्यान देना है.इनकी मांसिकता से लगता है कि आगे भी वे इसी प्रयास मे जुटे रहेगे.सुदेश महतो को भ्रम है कि नेता का कद उसके उल्लेखणीय कार्यो से नही अपितु मंत्रिमंडल के बडे पद से बढता है.इन्हे कम से कम बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से यह सीख लेनी चाहिये कि पद कोई भी हो,जनपरक कार्यो से लोकप्रियता हासिल की जा सकता है. बहरहाल,झारखंड मे जरूरत है एक ऐसी सरकार की जो अपना कार्यकाल पूरा करे और आमजन की कसौटी पर खरा उतर उतरे.यदि झामुमो के शिबू सोरेन को भाजपा और आजसू ने प्रदेश का मुखिया चुना है तो उन्हें राज्य हित मे कार्य करने की पूरी छूट मिलनी चाहिये. उन्हें ब्लैकमेल करने की कोशिश का अर्थ हैसमुचे झारखंड को ब्लैकमेल करना.जो किसी के भी हित मे नही है.

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