शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

"स्कीजोफ्रेनिया" के शिकार हैं शिबू सोरेन!

आप शिबू सोरेन को क्या कहेगें? अपने समर्थकों के बीच दिशोम गुरू और विरोधियों के बीच गुरूघंटाल के नाम से विख्यात-कुख्यात झारखंड मुक्ति मोर्चा के इस सर्वोसर्वा नेता को आप कुछ भी कहें.लेकिन इस बात को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता है कि वे भाजपा-कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय राजनीतिक दलों जो क्षेत्रीय दलों को लेकर राजनीति कम और कूटनीति कहीं अधिक करती है,उसका सामना करने की मानसिक स्थिति में नहीं है.दूर-दराज के गाँव-जंगल में आंदोलन कर लोकप्रियता हासिल करना अलग बात है और छल-प्रपंच,धन-बल की राजनीति झेलना दीगर बात.
दरअसल शिबू सोरेन सत्ता की राजनीति के लिए बने ही नहीं है.उनके बोल जहाँ झारखंडी समाज के निचले तबके के बीच हुंकार मानी जाती है वहीं सभ्रांत राजनेताओं के बीच बुडबकई. यही बुडबकई उनके राजनीतिक पतन का कारण बनती जा रही है और उनकी राजनीतिक विरासत के उतराधिकारी पुत्र हेमंत सोरेन के राजनीतिक भविष्य के लिए भी नुकसानदायक साबित होगें.
ऐसे में आज-कल श्री सोरेन के बुडबकई बढ़ गए हैं.वे क्या करते-बोलते है.ये समझ से परे लगते है. विशेषज्ञों की नज़र में श्री शिबू सोरेन अब शारीरिक व मानसिक रूप से काफी बीमार चल रहे हैं.उनके ईलाज के दौरान जिस तरह के रसायन पहले दिए गए हैं और फिलहाल दिए जा रहे है,उससे उनके दिलोदिमाग पर गंभीर असर दिख रहा है. इस तरह के ईलाज को लेकर कभी श्री सोरेन के पुत्र दुर्गा सोरेन कड़े सवाल उठाये थे, जो अब जीवित नहीं हैं..
सामान्यतः उनमें कुछ ऐसे लक्षण प्रकट हैं,जो गंभीर मनोशारीरिक बीमारी “स्कीजोफ्रेनिया” यानि मनोविदालता से मेल खाती दिखती है.जैसे सार्वजनिक जीवन में असफलता के भय,रह-रह कर कुछ इस तरह के व्यवहार कि अचानक लोगों का ध्यान आकृष्ट हो.आलावे पीड़ित द्वारा यह अंगीकार कर लेना कि वह जो भी कुछ करता-कहता है ,वही सही है और लक्षित वस्तु पर पहला अधिकार सिर्फ उसी का है.हालांकि उसकी यह सोच प्रायः उल्टा परिणाम ही सामने लाता है. बाद में तुरंत उसे अपनी गलती का अहसास होता है और उल्टे परिणामों को सीधा करने में उलझ जाता है.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

धन्यवाद