शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के जन्मदिन पर ये उनका अपमान नहीं तो क्या है ?

अक्टूबर.. एक संकल्प समृद्ध मानवता की याद को दोहराने का दिन..क्योंकि विश्व में सर्वप्रथम हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को ही ये दृष्टि मिली कि राजनीति, अर्थ और अधिकार मानवता को चरम शिखर तक पहुंचाने का एकमात्र रास्ता है.
...लेकिन ये सब सिर्फ कहने-सुनाने के लिए है? जीवन में कोई मायने नहीं रखते? यदि रखते हैं तो कल मैनें झारखंड की राजधानी के राँची विश्वविद्यालय परिसर स्थितमौलाना आजादसभागारमें उनके पावन जन्म दिन के अवसर पर आयोजित एक क्वीज प्रतियोगिता में शामिल होने के दौरान मैनें जो महसूस किया, वह गांधी के सिद्धांतों के अनुरूप माने जा सकते हैं?
...राँची विश्वविद्यालय के कुलपति समेत दर्जनों विद्वान शिक्षक मौजूद थे.उन सबों की मौजूदगी में राष्ट्रभाषा हिन्दी का इतना बड़ा अपमान! आज हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जिंदा होते तो वेशक उनकी आत्मा कराह उठाती....अरे मूर्खों, मैंने अंग्रेजों की दासता से तो मुक्ति दिला दी, अंग्रेजी मानसिकता से मुक्ति कब पाओगे?
मैं अंग्रेजी भाषा का विरोधी नहीं हूँ. ये सब मैं इस लिए लिख रहा हूँ कि मेरे आँखों के सामने भाषा के नाम पर प्रतिभाओं का दमन किया गया है. करीब दो सौ प्रतिभागियों के बीच प्राथमिक चयन के क्रम में अग्रेंजी भाषा में जो प्रश्नपत्र बांटे गये, उसे अस्सी फीसदी से प्रतिभागी समझ नहीं पाए. क्या राष्ट्रपिता के सामने राष्ट्रभाषा हिन्दी के अपमान और हिन्दीभाषी प्रतिभाओं का दमन नहीं है?
.......और तो और, लोगों को गाँधी के रास्तो पर चलने का आह्वान करनेवाले विद्वान शिक्षकों ने अपने राष्ट्रपिता को सिर्फ अग्रेंजी भाषा में श्रदान्जली ही दिए अपितु प्रतियोगिता के दौरान चयनित प्रतिभागियों से अग्रेंजी भाषा में ही सवाल पूछे गये. प्रतिभागियों ने करीब सत्तर फीसदी सबालों के जबाब कड़े अग्रेंजी भाषा के कारण देने में विफल रहे. प्रश्नकर्ता ने अपना परिचय दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल के विश्लेषक के रूप में दिया और कुलपति ने दिल्ली के वातानुकूलित कमरे से निकल कर राँची जैसे(!) शहर में आने पर तहे दिल से धन्यवाद प्रक किया था.

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