रविवार, 14 अगस्त 2011

मानव भ्रष्टाचार के नाम पर राजनीति कब तक !!

सभी चाहते हैं कि समाजिक जीवन भ्रष्टाचार-मुक्त हो.....किन्तु मात्र कानून बन जाने से किसी समस्या का समाधान नहीं होता। समाधान तभी होता है जब देश के नागरिकों का चारित्रिक स्तर ऊंचा होता है और कानूनों को लागू करने वालों की नीयत साफ होती है। प्रश्न उठता है कि लोकपाल के आने से शासन और प्रशासन में काबिज़ लोगों का क्या एकदम से हृदय परिवर्तित हो जायगा? भ्रष्टाचारी तत्काल सदाचारी हो जाएंगे? रातो-रात समाज अनुशासन में ढल जाएगा? ऐसा सोचना एक भारी भूल होगी। सदियों से मानव भ्रष्टाचार के नाम पर राजनीति करता चला आ रहा है। राजनीति पुरानी होती है, महिमा मंडित होती है और नए-नए रूपों में प्रगट होती है। मानव ने भ्रष्टाचार के तमाम झंखाड़ रोपे हैं। उनकी जड़ें उखाड़ी नहीं हैं। सदाचारी बनाए जाने का काम जितना आसान बच्चों पर होता है उतना बूढ़े तोतों पर नहीं होता है। भ्रष्टाचार की सफाई एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कोई व्यक्ति अपने घर में एक महीने तक झाड़ू न लगाए फिर देखे घर कैसा लगता है? देश तो बहुत बड़ी चीज़ है

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