बुधवार, 17 अगस्त 2011

मुझे माफ करना अन्ना,मैं इन दलालों पर शर्मिंदा हूं.....

कल मैं झारखंड की राजधानी रांची की सड़कों पर खाक छान रहा था। दरअसल मैं बड़े उत्साह के साथ यह देखना चाह रहा था कि दरअसल अन्ना समर्थकों के जुनून का आलम क्या है। मेरी आंखों ने जो कुछ देखा और जो महसुस किया,वह खुद को झकझोड़ कर रख देता है। और मेरी विवशता सिर्फ इतना ही कहने की इजाजत देता है कि हे अन्ना! मुझे माफ करना,मैं शर्मिंदा हूं। हर जगह अन्ना के नाम पर नौटंकी।कहीं कोई आम नहीं।हर जगह सिर्फ खास देखने को मिले। तिरंगा,गांधी और अन्ना की तस्वीरों के साथ बैठे वही व्यवस्था के दलाल चेहरे, जिसकी आगोश से भारत माता को कथित दूसरी आजादी दिलाने का स्वप्नजाल बुना जा रहा है। तो कहीं शराब के नशे में धुत्त प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का पुतला जलाते दर्जन भर युवक,जिसे मीडिया वाले अपने इशारों पर नचा रहे थे।
आज यहां के सभी अखबारों ने भी उसे “दिखता है वह बिकता है” के अंदाज में परोसा है। खुद भ्रष्टाचार और अनैतिकता में आकंठ डूबे संपादक वीरों ने कस कर अपनी भड़ास निकाली है, मानो कि वे कितने दिनों से इसकी प्रतीक्षा में हों! और खांटी दूध में धूले हों!

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