सोमवार, 28 मार्च 2011

मीडिया : आखिर सोच-सोच में फर्क क्यों है ?

दो दिन पहले मैंने एक मीडिया हाउस को छोड़ दिया..नए-नए संसाधनों को देख अनेक स्वप्नों का जन्म लेना लाजिमी था..लेकिन दुर्भाग्य कि संसाधनों के बदलने मात्र से कुछ नहीं बदलता..व्यक्ति की सोच बदलनी चाहिए..दो महीनों के भीतर मैंने जो करीव से देखा..परखा, उसने मन की पीड़ा को और इस कदर पीड़ित कर दिया कि मन-मष्तिस्क निर्णय ले लिया...... ..आस्मां में हो सकता है सुराख, बस तबियत से एक पत्थर उछालने की देरी है..........अब आप बताइए कि किस व्यक्ति की सोच बदलनी चाहिए..हर कोई मुझ पर प्रेसर बना रहें हैं...क्या मुझे झुक जाना चाहिए था..या टूटना ही बेहतर रहा...

"' करीव 2 माह से शुरु रांची के एक न्यूज़ (कशिश) चैनल के चीफ एडिटर विजय भास्कर और न्यूज हेड गंगेश गुंजन जी ने 22 जनवरी को न्यूज़ रुम में कार्य करने को कहा..इसके पूर्व मीडिया के दो पीढ़ी के साक्षात् दर्शन दिखे इन दोनों ने एक साथ मेरा लिखित व मौखिक साक्षात्कार लिए थे..मेरे पास प्रिंट-वेब मीडिया में रिपोर्टिंग-एडिंग के अनुभव रहे हैं..इसलिए मैंने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि मैं स्क्रीप्ट राइटर बनना चाहता हूं..तब दोनों ने कहा था कि 2 माह तक 2500 रु.प्रति माह पारिश्रमिक पर बतौर काम करें..उसके 2 माह बाद मुझे नियमित कर दिया जाएगा..उस समय चैनल सिंग्नल मोड मे भी चालू नही हुआ था..तब से इतनी लगन से काम करना शुरु किया कि सुबह भूखे पेट घर से न्यूज़ रुम पहुंच जाता और जो काम करने को मिलता....उसे बैग में टिफिन होने के बाबजूद देर शाम तक भूखे पेट भी करते रहता..साथी-संगी कहा भी करते कि अरे यार ये इलेक्ट्रॉनिक मीडिया है..जितना ज्यादा काम लगन से करोगे..इस हॉउस से उतनी जल्दी ही फेंकाओगे..
आज ये बात सच निकली..जब चैनल के न्यूज़ हेड गंगेश गुंजन जी ने मोबाइल पर ही दफ्तर से बाहर निकल जाने को कहा..इसका मूल कारण मात्र यह है कि मैंने उनकी अनुपस्थिति में चीफ एडीटर विजय भास्कर जी को एक आवेदन दिया..जिसमे लिखा था कि 22 मार्च को 2 माह पूरा रहा है..अतएव मेरे कार्यों का मूल्यांकन करने की कृपा की जाय..इसके पूर्व मैं चैनल के प्रबंधक से भी मिला था..इसलिए कि मुझे ऑफर लेटर उन्हीं के हस्ताक्षर-हाथ से प्राप्त हुए थे..जिसे आवश्यक कागजातों के साथ ज्वायनिंग के बाद जमा कर दिया था..
मुझ पर चैनल हेड का गुस्सा इसी संदर्भ में है कि वे चैनल के बॉस हैं और मैंने उन्हें क्रॉस किया.. यहां पर एक अनुभव यह है कि इलेक्टॉनिक मीडिया में न्यूज़ हेड के सामने चीफ एडीटर की भूमिका काफी उलट है..लेकिन यहां पर एक बात समझ में नहीं आती कि आउटपुट एडीटर रविन्द्र भारती ने आज 2 माह बाद ये क्यों कहा कि मैं सफिसिएंट नहीं हूं..इसलिए अनुभव पत्र भी नहीं दिया जा सकता.. .जबकि 21 मार्च तक यही शख्स मेरे कार्य के कशीदे काढ़ते थे... "

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