नेवरी विकास(रांची) से बरही(हजारीबाग) तक एन.एच.-33 राष्ट्रीय
उच्च मार्ग का फोर लेनिंग कार्य कर रहे जीआर इन्फ्रा प्रोजेक्ट लिमिटेड के
मोरांगी कैंप पर हमला कर माओवादियों ने 32 मशीनी वाहनों को फूंक डाला.इससे
कंपनी को करोड़ों का चूना ही नहीं लगा है बल्कि उसके सारे अधिकारी-कर्मचारी
दहशत में आ गए हैं. इस घटना के बाद कंपनी ने फिलहाल अपना कार्य बंद कर
दिया है..
वेशक यह घटना निंदनीय है.लेकिन सबाल उठता है कि इस
घटना को माओवादियों ने किस समर्थन के बल अंजाम दिया..यदि हम इसका जबाव
ढूंढे तो इसके लिए एन.एच-33 के अधिकारी और एन.एच. -33 के लिए भूअर्जन करने
वाली जिला प्रशासन भी कम दोषी नहीं है..
केन्द्र और प्रदेश सरकार की इन दोनों ईकाइयों ने
सड़क के किनारे बसे लोगों के मकानों को अधिग्रहित करने में भारी अनियमियता
बरती है..भ्रष्टाचार में आकंठ डूब कर खूब लूट-खसोंट की है..पैसे और पैरवी
के बल जहां चंद लोगों को दोगुनी-तीगुनी मूल्यांकण राशि बिना किसी जांच-
पड़ताल के दी है ...वहीं सड़क निर्माण के नक्सों में भी कम छेड़-छाड़ नहीं
की है..कहीं कुछ मापदंड अपनाया है तो कहीं कुछ. सड़क किनारे बिजली-टेलीफोन
के खंभों के उखाड़ने-गाड़ने के क्रम में भी इस विभाग के दलाल काफी इधर-उधर
कर रहे हैं.
इन सबों की शिकायत सुनने वाला भी जिला से राज्य
प्रशासन तक कोई नहीं है. जो लोग रिश्वत और पैरवी की भाषा नहीं जानते,उनका
दफ्तरों के चक्कर काटते-काटते आक्रोशित होना स्वभाविक है.
एन.एच-33 से जुड़े जिले के भूअर्जन कार्यालय के अदना
अमीन से लेकर बड़े साहबों तक अपनी भूमि से महरुम हुए रैयतों की हालत
मनरेगा के मजदूर से भी बद्दतर कर डाली है..उसे इतना परेशान किया जा रहा है
कि मानो सरकार उन्हें जमीन-मकान का मुआवजा नहीं अपितु,भीख दे रही हो.
अगर आंकलन किया जाय तो विकास, ईरबा, चकला, दड़दाग,
ओरमांझी,चुट्टूपालू से लेकर रामगढ़ से आगे तक स्थिति और भयावह दिखती है.
संभव है कि यदि एन.एच.-33 और जिला भूअर्जन के कर्मचारी-अधिकारी अपने
कार्यकलापों में ईमानदारी नहीं लाए तो माओवादी उसके इन क्षेत्रों के कैंप
पर भी जोरदार हमला कर सकते हैं..आम लोगों के आक्रोश को भुना सकते हैं.
अत्यंत दुखद पहलु तो यह है कि इस महापाप में मीडिया की भूमिका भी काफी
संदिग्ध है...वे जमीन से जुड़ी सही सूचनाएं उजागर नहीं कर रही है.
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