शनिवार, 25 जून 2011

राष्टीय आंदोलन वनाम बाबा रामदेव और अन्ना हजारे


मैं आशावादी हूं..फिर भी मेरे जेहन में एक नकारात्मक सबाल उठ रहा है कि आगामी 16 अगस्त,2011 की कड़ी परीक्षा में हमारे अन्ना साहेब फेल होंगे या पास ? मुझे तो लगता है कि वे अपनी परीक्षा की तैयारी जिस ढंग से कर रहे हैं !!!......उसमें फेल होने के खतरे कहीं अधिक दिख रहे हैं.
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि गांधी जी की टोपी और खादी पहन लेने से कोई गांधी नहीं हो जाता...यदि ऐसा होता तो..आज हमारे देश की इतनी दुर्गति नहीं होती,क्योंकि आजादी के बाद से ही लूट का नंगा नाच ये टोपी और खादीधारी लोग ही करते आ रहे हैं..
गांधी जी का सत्याग्रह गांव-गांव से शुरु हुआ था..उन्होंने खुद इसकी व्यापक तैयारी की थी..उनकी एक तरफ सरकार से बातचीत होती थी तो दूसरी तरफ अंतिम आदमी तक संपर्क करने की कठिन प्रयास भी जारी रहता था..
लेकिन क्या अन्ना जी के साथ ऐसी बात है ? वे सिर्फ जंतर-मंतर से मीडिया के सहारे परिवर्तन चाहते हैं..जो कभी भी परिवर्तित होने का चरित्र रखती है...रामदेव बाबा के साथ क्या हुआ ? जो मीडिया अनशन के पहले उन्हें " राम " बना रही थी...रात के अत्याचार के बाद " सलबार में भागे बाबा " कह मात्र सुर्खियों को भुनाने का ही कार्य किया.
परिवर्तन जयप्रकाश और राम मनोहर लोहिय़ा जी ने भी की थी..इंदिरा जी के तानाशाही के खिलाफ राजनीति के स्वच्छ लोगों..नए युवाओं को एक सूत्र में पिरोकर उन्होंने देश में सफल क्रांति ला दी..उन्होंने सरकार की लाठियां खाई और हजारों के साथ जेल गए..
अन्ना जी के साथ ऐसी बात नहीं है....वे मीडिया नेटवर्क से जितने जुड़े हैं..आम जनता से उतने ही अलग-थलग.उन्हें एकजुट करने के कोई ठोस साधन हैं अन्ना जी के पास ?
रामदेव बाबा को मैं उनके सामने कोई बड़ा शख्सियत घोषित नहीं कर रहा...लेकिन यह कटु सत्य है कि वे अपने योग शिविरों में भ्रष्टाचार और उसके खिलाफ जनांदोलन की बात अवश्य करते थे..इस तरह वे लाखों समर्थक ही न बना रखे हैं...लाखों कार्यकर्ताओं की फौज भी खड़ी कर ली है..योगगुरु रामदेव बाबा के अनशन का खुला साथ न देना भी अन्ना साहेब की एक कमजोरी नहीं मानी जा सकती है.?
कहीं भी विचारों का टकराव होना लाजमि है..क्योंकि घर्षण से ही आग निकलती है....लेकिन अफसोस, मैं देख रहा हुं कि फेसबुक (हल्ला बोल मीडिया ग्रुप) पर लोग एक दुसरे पर चिढ़ते अधिक..चिखते कम हैं और अगर चीखते भी हैं तो पीछे से.
अन्ना हो या बाबा के समर्थक...उनमें जो आग भ्रष्टाचार विरोधी होनी चाहिए...उससे कहीं अधिक आग एक दुसरे के विपरित देखने को मिल रही है..क्या लोगों को यह नहीं सोचना चाहिए कि विचारों में समानता बढ़े..एकजुटता बढ़े......
एक सज्जन का सबाल है कि आप कैसा परिवर्तन चाहते है ? ..मन करता है कि झुंझला कर लिख दूं... ' लिंग परिवर्तन."......सोनिया जी को वाजपेयी और वाजपेयी जी को सोनिया बनाने का परिवर्तन.....
मुझे तो लगता है कि जो लोग ऐसा सबाल करते हैं..वे बाबा-अन्ना के समर्थक नहीं..भ्रष्ट-तंत्र के असली नुमायंदे हैं………………( मुकेश भारतीय )

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